ढाई महीने में ही टूटी गौ पेट्रोलिंग योजना की सांस
भोपाल । मप्र की सडक़ों और हाइवे पर गौ वंश के कारण होने वाली सडक़ दुर्घटनाओं और उसमें होने वाली मौतों को देखते हुए सरकार ने गौ पेट्रोलिंग योजना बनाई थी। इसके तहत सडक़ों से गायों को हटाकर उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचाना था, लेकिन इस योजना की ढाई माह में ही इस कदर सांस टूटने लगी है कि इसे बंद करने की तैयारी शुरू हो गई है। दरअसल, योजना को आगे चलाने के लिए पशु संचालनालय ने हाथ खड़े कर दिए हैं।
गौरतलब है कि प्रदेश की सडक़ों और हाइवे पर निराश्रित गौ वंश को पकडऩे के लिए करीब ढाई महीने पहले बनी गौ पेट्रोलिंग योजना अपनी शुरूआत में ही दम तोड़ती नजर आ रही है। विभागों की बेरूखी और उनमें आपसी तालमेल की कमी के चलते योजना मूर्त रूप नहीं ले पाई है। आलम यह है कि योजना को आगे चलाने के लिए पशु संचालनालय ने हाथ खड़े कर दिए हैं। योजना तीस सितम्बर तक थी इसके बाद इसकी समीक्षा की जानी थी पर सोमवार तक योजना को आगे बढ़ाने के बारे में कोई फैसला नहीं हो पाया है। भोपाल समेत प्रदेश के 6 जिलो में राजमार्गों को कैटल फ्री करने के लिए एक जुलाई से पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया था। पशुपालन विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक इन छह जिलों के नौ राजमार्गों पर एक जुलाई से 31 अगस्त तक 3 हजार 953 निराश्रित गौवंश को सडक़ों से उठाकर गौशालाओं में शिफ्ट किया गया। इस अवधि में सडक़ दुर्घटनाओं में 162 गौवंश की मौत हो गई और 510 गायें घायल हो गईं, जिनका चलित पशु चिकित्सा इकाई या स्थानीय पशु चिकित्सालय अमले के द्वारा उपचार किया गया।
बारिश के मौसम में शहर और प्रदेश की सडक़ों पर बड़े पैमाने पर जमा हो रहे गौ वंश के कारण हो रही दुर्घटनाओं को रोकने और बड़े वाहनों की चपेट में आकर मरने वाले गौ वंश को सुरक्षित रूप से प्रदेश की गौ शालाओं में भेजने के लिए जुलाई माह के पहले सप्ताह से गौ पैट्रोलिंग योजना तैयार की गई थी। इस योजना में तय किया गया था कि पशु संचालनालय विभाग सडक़ों पर पेट्रोलिंग कर सडक़ों और आसपास के हाइवे से गौवंश को हटाकर उन्हें सुरक्षित रूप से गौशाला भेजगा। योजना से लोक निर्माण विभाग और नगरीय विकास विभाग को भी जोड़ा गया था। इन विभागों को भी अपने स्तर पर इस योजना को अमली जामा पहनाने में सहयोग करना था। इसके लिए पशु संचालनालय विभाग को दो वाहन भी उपलब्ध कराए गए थे। योजना को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर भोपाल से शुरू किया गया था। भोपाल के परिणामों को देखकर इसे दूसरे शहरों में भी लागू किया जाना था। पहले महीने तो योजना ठीक-ठाक चली और सडक़ों से करीब सात सौ गौ वंश को पकडक़र आसपास की गौ शालाओं में भेजा गया पर इसके बाद योजना धीरे धीरे मंद होती चली गई।
गौरतलब है कि सरकार ने बड़े जोश-खरोश के साथ योजना को शुरू किया था। लेकिन अब यह योजना पटरी से उतरने लगी है। इसका प्रमुख कारण विभाग के आला अधिकारियों का इसमें रूचि न लेना था। न तो लोक निर्माण विभाग ने इसमें रूचि ली और न ही नगरीय विकास विभाग ने अपेक्षित सहयोग किया। लिहाजा योजना पूरी तरह पशु संचालनालय विभाग पर निर्भर होकर रह गई। पायलट प्रोजेक्ट बनाते समय तय किया गया था कि योजना को अभी तीस सितम्बर तक चलाया जाएगा। इसके बाद पूरी योजना की समीक्षा की जाएगी। यह तिथि भी सोमवार को खत्म हो गई। जानकारी के मुताबिक अब तक योजना को लेकर कोई समीक्षा बैठक आयोजित नहीं की गई। वहीं पशु संचालनालय विभाग ने इस योजना को चलाने से हाथ खड़े कर दिए हैं। उसने सरकार को पत्र लिखकर कहा है कि उसके विभाग का काम मुख्य रूप से पशुओं का इलाज करना है। उसके पास इस योजना के लिए न तो पर्याप्त साधन है और न ही संसाधन और प्रशिक्षित अमला। विभाग कर्मचारियों की कमी से भी जूझ रहा है। विभाग की ओर से लिखे पत्र में यह भी कहा गया है कि योजना में लोक निर्माण विभाग और नगरीय विकास विभाग से भी सहयोग प्राप्त नहीं हो रहा है। अपनी दिक्कतों के बताने के साथ विभाग ने आगे योजना चलाने के लिए मार्गदर्शन भी मांगा है। योजना अब आगे चलेगी, इसे लेकर अब संशय की स्थिति बन गई है।