धर्म

व्यापारियों की आस्था का केंद्र है ये 200 साल पुराना शिव मंदिर…पेड़ से प्रकट हुआ था शिवलिंग

कुमाऊं का प्रवेश द्वार हल्द्वानी आर्थिक राजधानी के रूप से भी जानी जाती है. कुमाऊं के कण-कण में देवी-देवताओं का वास माना जाता है. कुमाऊं मंडल ऋषि-मुनियों की तपोस्थली भी रही है. हल्द्वानी में पिपलेश्वर मंदिर की बड़ी मान्यता है. इस मंदिर की अपने आप में एक अनोखी कहानी है. यहां आने वाला हर भक्त भोलेनाथ से अपनी मनोकामना मांगता है. माना जाता है कि भगवान शंकर अपने भक्‍तों की मनोकामनाएं पूरी भी करते हैं.

हल्द्वानी शहर में पटेल चौक के पास भगवान शिव का पिपलेश्वर महादेव मंदिर स्थित है. यह मंदिर 200 साल पुराना बताया जाता है. इस मंदिर के पास वट और पीपल का वृक्ष भी है, जिनकी आपस में शादी कराई गई. इस मंदिर पर भक्तों का अटूट विश्वास है और भक्त दूर-दूर से इस मंदिर पर आते हैं. पिपलेश्वर मंदिर में भगवान शिव के साथ-साथ भगवान शनिदेव, बजरंग बली और भैरव बाबा की मूर्ति भी स्थापित है.

क्या है मंदिर की मान्यता?
मान्यता है कि बाबा महादेव गिरी को भगवान शिव ने यहीं पर दर्शन दिए थे. 200 साल पुराना पीपल का पेड़ आज भी इस मंदिर का साक्ष्य है, जिस वजह से मंदिर को पिपलेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि इसी पेड़ की जड़ से शिवलिंग की उत्पत्ति हुई थी. जिसके बाद से भक्तों ने इस शिवलिंग को चांदी की पतली चादर से ढक इसे मंदिर में स्थापित किया. बताया जाता है कि बाबा महादेव गिरी ने पीपल के पेड़ के नीचे बरसों तपस्या की थी, जिसके बाद भगवान शंकर ने उन्हें स्वपन में आकर दर्शन दिए थे.

व्यापारियों की आस्था का केंद्र है ये मंदिर
इस मंदिर में भगवान शिव के साथ-साथ भगवान शनि और बजरंगबली और भैरव बाबा की मूर्ति भी स्थापित है. मंदिर शहर के मुख्य बाजार में होने के चलते इस मंदिर में व्यापारियों की बड़ी आस्था है. व्यापारी अपना काम शुरू करने से पहले भगवान शिव के मंदिर में माथा टेकने के साथ ही भगवान शिव को जलाभिषेक अवश्य करते हैं.

सोमवार और शनिवार उमड़ते हैं श्रद्धालु
सोमवार और शनिवार को इस मंदिर में श्रद्धालुओं की अधिक भीड़ दिखाई देती है. कहा जाता है कि लोहे के कारोबार से जुड़ा व्यवसाय शुरू करने और नए वाहन खरीदने वालों लोग पहले मंदिर में पूजा जरूर करवाते हैं. शनिवार के दिन मंदिर में इनका तांता लगा रहता है. लोग यहां शनिदोष से मुक्ति के लिए भी आते हैं. महाशिवरात्रि और श्रावण मास में यहां पर भारी संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं.
 

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